hindi vyanjan | हिंदी व्यंजन की परिभाषा और वर्गीकरण

Hindi Vyanjan | हिंदी व्यंजन

 

हिंदी भाषा में व्यंजन की अहम भूमिका होती है (Hindi Vyanjan) हिंदी भाषा के आधार होते है। आज के इस लेख में हम आपको हिंदी व्यंजन की सम्पूर्ण जानकारी देने वाले है। यहाँ पर आप जान सकेंगे की व्यंजन की परिभाषा क्या होती है उसके कितने भेद होते है और व्यंजनों को कितनी श्रेणी में बाटा गया है।

अगर आप हिंदी व्यंजन (Hindi Vyanjan) के बारे में यह सारी जानकारी प्राप्त करना चाहते है तो इस लेख को अवश्य पूरा पढ़े।


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vyanjan ki paribasha | व्यंजन की परिभाषा

 

" स्वरों की सहायता से उच्चारित होने वाली ध्वनियों (वर्णों) को व्यंजन कहते है। "

स्वरों के सामान 'व्यंजन' स्वंतंत्र तथा पूर्ण या आत्मनिर्भर धवनियाँ नहीं है। इनके उच्चारण में स्वरों का सहयोग होता है। हिंदी में ये स्वरों को मिलाकर लिखे जाते है।

 

व्यंजनों का वर्गीकरण

 

हिंदी व्याकरण में व्यंजनों का वर्गीकरण हर छोटी बड़ी चीज को ध्यान में रखते हुए किया गया है। हिंदी व्यंजनों (Hindi Vyanjan) के वर्गीकरण उच्चारण के आधार पर, उच्चारण स्थान के आधार पर, और अध्ययन के आधार पर इस तरह से किया गया है।

मुख्य रूप से हिंदी व्यंजनों (Hindi Vyanjan) का वर्गीकरण का पांच तरह से किया गया है जो की निम्नलिखित है -

 

  • उच्चारण के आधार पर व्यंजनों का वर्गीकरण
  • उच्चारण स्थान के आधार पर व्यंजनों  का वर्गीकरण
  • अध्ययन की सरलता हेतु व्यंजनों का सामान्य वर्गीकरण
  • स्वर घोष के आधार पर व्यंजनों का वर्गीकरण
  • प्राणवायु के आधार पर व्यंजनों का वर्गीकरण

 

 

उच्चारण के आधार पर व्यंजनों का वर्गीकरण

 

जब भी हम किसी व्यंजन वर्ण का उच्चारण करते है तो प्राणवायु हमारे मुख में के किसी न किसी भाग को स्पर्श करती है कभी नाक से निकलती है कभी मुख से है। इन्ही सब स्तिथियो (उच्चारण) के आधार पर ही यह वर्गीकरण किया गया है।

 

व्यंजनों के वर्गीकरण की अगर हम उच्चारण के आधार पर बात करे तो इसके कुल आठ भेद होते है।

 

  • स्पर्श व्यंजन
  • नासिक्य व्यंजन
  • पार्श्विक व्यंजन
  • संघर्षी व्यंजन
  • स्पर्श संघर्षी व्यंजन
  • प्रकम्पित व्यंजन
  • संघर्षहीन व्यंजन
  • उत्क्षिप्त व्यंजन

 

स्पर्श व्यंजन

ऐसे व्यंजन जिनका उच्चारण करते समय जिव्हा मुख के किसी न किसी अव्यय को स्पर्श करती है उन्हें स्पर्श व्यंजन कहते है।

स्पर्श व्यंजन की संख्या 16 होती है। हिंदी वर्णमाला के क - वर्ग , ट - वर्ग , त - वर्ग और प - वर्ग स्पर्श व्यंजन के अंतर्गत आते है।

 

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स्पर्श व्यंजन की सम्पूर्ण जानकारी


नासिक्य व्यंजन

ऐसे व्यंजन जिनका उच्चारण करते समय प्राणवायु का कुछ या अधिकतर भाग नाक के द्वारा बहार निकले उन्हें नासिक्य व्यंजन कहते है।

नासिक्य व्यंजनों की संख्या 5 होती है। हिंदी वर्णमाला के ङ, ञ, ण, न, म नासिक्य व्यंजन के अंतर्गत आते है।

 

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पार्श्विक व्यंजन

ऐसे व्यंजन जिनका उच्चारण करते समय प्राणवायु जिव्हा के पार्श्व से निकल जाती है उन्हें पार्श्विक व्यंजन कहते है।

पार्श्विक व्यंजनों की संख्या 1 होती है। ' ल ' पार्श्विक व्यंजन की श्रेणी में आता है।

 

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संघर्षी व्यंजन

ऐसे व्यंजन जिनका उच्चारण करते समय प्राणवायु को मुख से बाहर निकलने में संघर्ष करना पड़ता है उन्हें संघर्षी व्यंजन कहते है।

 

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संघर्षी व्यंजन की सम्पूर्ण जानकारी


स्पर्श संघर्षी व्यंजन

ऐसे व्यंजन जिनका उच्चारण करते समय प्राणवायु मुख से बाहर निकलते समय मुख्य अवयवों को स्पर्श करते हुए संघर्ष के साथ बाहर निकलती है उन्हें स्पर्श संघर्षी व्यंजन कहते है।


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स्पर्श संघर्षी व्यंजन की सम्पूर्ण जानकारी 


प्रकम्पित व्यंजन

ऐसे व्यंजन जिनका उच्चारण करते समय जिव्हा में कम्पन महसूस हो उन्हें प्रकम्पित व्यंजन कहते है।

 

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प्रकम्पित व्यंजन की संपूर्ण जानकारी

 

संघर्षहीन व्यंजन

ऐसे व्यंजन जिनका उच्चारण करते समय प्राणवायु बिना किसी संघर्ष के मुख के बाहर निकल जाती है उन्हें संघर्षहीन व्यंजन कहते है।

 

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संघर्षहीन व्यंजन की संपूर्ण जानकारी

 

उत्क्षिप्त व्यंजन

ऐसे व्यंजन जिनका उच्चारण करते समय जिव्हा का अग्र भाग झटके के साथ में निचे जाये उन्हें उत्क्षिप्त व्यंजन कहते है।

 

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उत्क्षिप्त व्यंजन की संपूर्ण जानकारी

 


उच्चारण स्थान के आधार पर व्यंजनों का वर्गीकरण

 

इस वर्गीकरण में व्यंजनों को उनके उच्चारण स्थान के आधार पर बांटा गया है अर्थात  उच्चारण करते समय व्यंजन की ध्वनि किस स्थान से निकलती है उसको ध्यान में रखते हुए यह वर्गीकरण किया गया है।

उच्चारण स्थान के आधार पर व्यंजन के सात भेद होते है -

 

   भेद                      उच्चारण स्थान                    व्यंजन

तालव्य व्यंजन               तालु                   च, छ, ज, झ, ञ, य, श, ह

कण्ठ्य व्यंजन                कंठ                   क, ख, ग, घ, ङ

मूर्द्धन्य व्यंजन               मूर्द्धा                   ट, ठ, ड, ढ, ण, ड़, ढ़, र, ष

दंतोष्ठ्य व्यंजन          दन्त + ओष्ठ                व

दन्त्य व्यंजन                 दन्त                    त, थ, द, ध, न, ल, स

ओष्ठ्य व्यंजन              ओष्ठ                    प, फ, ब, भ, म

          

 

अध्ययन की सरलता हेतु व्यंजनों का सामान्य वर्गीकरण

 

अध्ययन के आधार पर व्यंजन के भेद तीन होते है जो की अग्रलिखित है -

 

व्यंजन का प्रकार            व्यंजन

स्पर्शी व्यंजन             क-वर्ग, च-वर्ग, ट-वर्ग, त-वर्ग, प-वर्ग के वर्ण

अन्तःस्थ व्यंजन                 य, र, ल, व

उष्म व्यंजन               श, ष, स, ह

 


स्वर घोष के आधार पर व्यंजनों का वर्गीकरण

 

स्वर घोष के आधार पर व्यंजनों को दो भागो में विभाजित किया गया है जो की निम्नलिखित है -

 

  • सघोष व्यंजन
  • अघोष व्यंजन

 

सघोष व्यंजन

 

ऐसे व्यंजन वर्ण जिनका उच्चारण करते समय स्वर तन्त्रियों में कम्पन उत्पन्न होता है उन्हें सघोष व्यंजन कहते है।

 

सघोष शब्द स + घोष से मिलकर बना है जहाँ पर 'स' का अर्थ होता है 'साथ' में और 'घोष' का अर्थ होता है 'कम्पन' जिसका सरल भाषा में अर्थ होता है  'कम्पन के साथ'।

 

हिंदी वर्णमाला के प्रत्येक वर्ग के आखिरी तीन वर्ण तथा य्, र्, ल्, व्, ह् सघोष व्यंजन कहलाते है। सघोष व्यंजनों की कुल संख्या 31 होती है।

 

अघोष व्यंजन

 

ऐसे व्यंजन वर्ण जिनका उच्चारण करते समय स्वर तन्त्रियों में कम्पन उत्पन्न नहीं होता है उन्हें अघोष व्यंजन कहते है।

 

अघोष शब्द अ + घोष से मिलकर बना है जहाँ पर 'अ ' का अर्थ होता है 'नहीं ' में और 'घोष' का अर्थ होता है 'कम्पन' जिसका सरल भाषा में अर्थ होता है  'कम्पन के बिना'।

 

 

हिंदी वर्णमाला के प्रत्येक वर्ग का पहला और दूसरा व्यंजन और श्, ष्, स् अघोष व्यंजन कहलाते है। अघोष व्यंजनों की कुल संख्या 13 होती है।

 

 

प्राणवायु के आधार पर व्यंजनों का वर्गीकरण

 

जब हम किसी व्यंजन वर्ण का उच्चारण करते है तो प्राणवायु हमारे मुख से बाहर निकलती है इस प्राणवायु के मुख के बाहर निकलने की मात्रा के अनुसार व्यंजन के दो भेद होते है -

 

  • अल्पप्राण व्यंजन
  • महाप्राण व्यंजन

 

अल्पप्राण व्यंजन

 

ऐसे व्यंजन वर्ण जिनका उच्चारण करने में कम समय लगता है और मुख से प्राणवायु की मात्रा भी कम निकलती है ऐसे व्यंजनों को अल्पप्राण व्यंजन कहते है।

 

हिंदी वर्णमाला के प्रत्येक वर्ग का पहला, तीसरा और पांचवा वर्ण वर्ण और य्, र्, ल्, व् अल्पप्राण व्यंजन के अंतर्गत आते है। अल्पप्राण व्यंजन की कुल संख्या 30 होती है।

 

अल्पप्राण शब्द अल्प + प्राण से मिलकर बना है जिसमे 'अल्प' का अर्थ 'कम' और 'प्राण' का अर्थ प्राणवायु के सम्बन्ध में है। अल्पप्राण का अर्थ कम प्राणवायु वाला होता है।  

 

महाप्राण व्यंजन

 

ऐसे व्यंजन वर्ण जिनका उच्चारण करने में अधिक समय लगता है और मुख से प्राणवायु की मात्रा भी अधिक निकलती है ऐसे व्यंजनों को महाप्राण व्यंजन कहते है।

 

महाप्राण शब्द महा + प्राण से मिलकर बना है जिसमे 'महा' का अर्थ 'अधिक' और 'प्राण' का अर्थ प्राणवायु के सम्बन्ध में है।

 

वर्णमाला के प्रत्येक वर्ग का दूसरा और चौथा वर्ण महाप्राण व्यंजन कहलाता है। महाप्राण व्यंजन की कुल संख्या 14 होती है। महाप्राण का अर्थ अधिक प्राणवायु वाला होता है। 



यह भी पढ़े - 

व्यंजन वर्ण

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