yojak chinh in hindi | योजक चिन्ह के प्रयोग के नियम परिभाषा और उदाहरण | yojak chinh

yojak chinh in Hindi (योजक चिन्ह)

 

yojak chinh in Hindi: आज के इस  लेख में हम आपको योजक चिन्ह के बारे में बताने वाले है। योजक चिन्ह हिंदी के विराम चिन्हो में से एक है। हिंदी भाषा में बहुत सारे और अलग अलग तरह के विराम चिन्ह होते है।


अगर आप जानना चाहते है योजक चिन्ह की परिभाषा क्या है (yojak chinh ki paribhasha) और उसके उदाहरण (yojak chinh ke udaharan) और योजक शब्द (yojak shabd) तो इस लेख को अवश्य पढ़े।


yojak chinh


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विराम चिन्ह के प्रकार और प्रयोग


योजक चिन्ह की परिभाषा  (yojak chinh ki paribhasha)

 

हिंदी भाषा की प्रकृति विश्लेषणात्मक होतो है। योजक चिन्ह को संयोजक या सामासिक चिन्ह भी कहते है। संयोजक चिन्ह को चिन्ह (-) के द्वारा प्रदिर्शित किया जाता है। हिंदी भाषा में अल्प विराम के साथ में इस चिन्ह का प्रयोग सबसे ज्यादा किया जाता है।

योजक चिन्ह का प्रयोग वाक्य में प्रयुक्त शब्दों के अर्थ को स्पष्ट करने के लिए किया जाता है।

 

योजक चिन्ह के उदाहरण (yojak chinh ke udaharan)

 

  • कभी-कभी हमे सब कुछ ईश्वर पर ही छोड़ देना चाहिए।
  • व्यवसाय में लाभ-हानि तो चलते ही रहता है।
  • खाते-पीते समय गुस्सा नहीं करना चाहिए।
  • सुख-दुःख तो जीवन में आते जाते रहते है।
  • आपको कम-से-कम मुझ पर इतना भरोसा तो करना चाहिए।
  • अभी शहर में जाकर न सब दाल-आटे के भाव पता चलेंगे।
  • अपने अनाज का एक-तिहाई हिस्सा दान कर दिया।
  • उतार-चढ़ाव ही हमे जीवन जीना सिखाते है।
  • मार-पीट करना बहुत बुरी बात होती है।
  • तो फिर हो जाये दो-दो हाथ।

 

उपरोक्त लिखे सभी उदाहरणों में लिखे गए शब्द जैसे लाभ-हानि, कभी-कभी, खाते-पीते, सुख-दुःख, कम-से-कम, दाल-आटे आदि सभी शब्दों में में योजक चिन्ह का प्रयोग किया गया है।

 

योजक चिन्ह के प्रयोग के नियम

 

01. विपरीत अर्थ रखने वाले शब्दों के बीच में योजक चिन्ह का प्रयोग किया जाता है।

जैसे:- अच्छा-बुरा, हानि-लाभ, आना-जाना, उतार-चढ़ाव, ऊपर-नीचे, उल्टा-सीधा  आदि।

 

02. तुलनावाचक या अनिश्चित संख्यावाचक ‘सा’, ‘सी’ या ‘से’ से पहले योजक चिन्ह का प्रयोग किया जाता है।

जैसे :- कम-से-कम, ज्यादा-से-ज्यादा, लक्ष्मण-सा-भाई, कैकई-सी-माता आदि।

 

03. जब संख्या को शब्दों में लिखा जाता है तब उनके बीच में योजक चिन्ह का प्रयोग किया जाता है।

जैसे :- दो-तिहाई, एक-तिहाई, एक-चौथाई भाग आदि।

 

04. सामान अर्थ रखने वाले शब्दों के बिच में योजक चिन्ह का प्रयोग किया जाता है।

जैसे :- शहर-शहर, गाँव-गाँव, डाल-ड़ाल, पात-पात, घर-घर आदि।

 

05. जब सामासिक पद में दोनों पद प्रधान हो तब योजक चिन्ह का प्रयोग किया जाता है। द्वन्द्व समास के सामासिक पदों में योजक चिन्ह का प्रयोग किया जाता है।

जैसे:- खान-पान, दूध-रोटी, लीपा-पोती, मोटा-ताजा, आगे-पीछे, दाल-चावल आदि। 

 

06. जिन शब्दों का अर्थ लगभग सामान या एक जैसा होता है उन शब्दों के बिच में भी योजक चिन्ह का प्रयोग किया जाता है।

जैसे :- घास-फूस, कपडे-लत्ते, घर-द्वार आदि।

 

07. तत्पुरुष समास के पदों में भी योजक चिन्ह का प्रयोग किया जाता है। जैसे :- राष्ट्र-हित, देश-भक्ति, हवन-सामग्री आदि।

 

08. लिखते समय जब कोई लाइन पूरी हो जाये और कोई शब्द आधा ही लिख पाए तो योजक चिन्ह लगा कर उसे अगली लाइन में लिख दिया जाता है।

 

09. प्रेणार्थक क्रियाओं के मध्य में योजक चिन्ह का प्रयोग किया जाता है। जैसे :-गिराना-गिरवाना, चलना-चलवाना, मारना-मरवाना, काटना-कटवाना आदि।

 

10. सार्थक शब्दों की तुकबंदी करने के लिए अक्सर बिना अर्थ वाले शब्दों का प्रयोग किया जाता है और उनमे योजक चिन्ह का प्रयोग किया जाता है।

जैसे :- पानी-वानी, चावल-आवल, चाय-वाय, आलू-वालू  आदि। 




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