Bhav vachya | भाव वाच्य की परिभाषा और उदाहरण

Bhav vachya (भाव वाच्य)

Bhav vachya: आज के इस लेख में हम आपको भाव वाच्य की परिभाषा और उदाहरणों के बारे में बताने वाले है। भाव वाच्य क्रिया के वाच्यो का एक प्रकार है। 


क्रिया के वाच्य कभी कर्म के अनुसार चलते है, कभी भाव के अनुसार तो कभी कर्ता के अनुसार के चलते है।  तो आज के इस लेख में हम खास करके केवल और केवल भाव वाच्य के बारे में बात करने वाले है।


अगर आप अपनी परीक्षा के अव्वल दर्जे से पास होना चाहते है तो इस लेख को जरूर पूरा और ध्यान से पढियेगा। या फिर आप प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे है तो ये टॉपिक उसके लिए भी बहुत जरुरी है।


Bhav vachya


भाव वाच्य की परिभाषा (Bhav Vachya Ki Paribhasha)


जब क्रिया कर्ता, कर्म के अनुसार न होकर भाव के अनुसार होती है, वहाँ भाव वाच्य होता है।


ऐसे वाक्य जिनका कर्ता और कर्म से कोई लेना देना नहीं होता है केवल भाव का पूरा खेल रहता है उसे भाववाच्य कहते है।


भाव वाच्य के वाक्यों में क्रिया सदैव अकर्मक क्रिया होती है और कर्ता करण कारक होते है।


इन वाक्यों में क्रिया सदैव एकवचन पुल्लिंग या अन्यपुरुष होती है और अगर किसी वाक्य में क्रिया स्त्रीलिंग होती है तो ऐसे वाक्य में भाववाच्य कभी नहीं पाया जाता है।

 

उदाहरण :-

  • अब खेला जाए।
  • आज पत्र लिखा जाए।

इन वाक्यों में खेलने, लिखने व बोलने के भाव व्यक्त किये गए है।  कार्य का कर्ता , कर्म अनुपस्थित है, अतः क्रियाएँ भाववाच्य में है।

 

भाव वाच्य के उदाहरण (Bhav Vachya Ke Udaharan)

  • पूजा से बैठा नहीं जाता।
  • रमेश से दौड़ा नहीं जाता।
  • सुरेश ने रमेश को बुलाया।
  • उससे अब दौड़ा नहीं जायेगा।
  • राधा से खाया नहीं जाता।
  • बच्चे से अब रोया नहीं जाता।
  • प्रिया से अब पढ़ा नहीं जाता।
  • सुप्रिया अभी भी बहुत तेज दौड़ जाती है।
  • गाय से दौड़ा नहीं जा रहा।

उपरोक्त सभी वाक्यों में दौड़ा नहीं जाता, रोया नहीं जाता, पढ़ा नहीं जाता इन शब्दों से भाव प्रकट हो रहा है। किसी भी वाक्य में न तो कर्म प्रधान है न की कर्ता। सभी वाक्यों में केवल भाव प्रधान है इसलिए ये वाक्य भाव वाच्य है।

 

आशा करते है आपको भाव वाच्य (Bhav Vachya)के बारे में दी गयी जानकारी पसंद आयी होगी और समझ  भी क्योकि हमने इसे बिलकुल ही आम भाषा में आपके सामने प्रस्तुत किया है। Vachya in Hindi, Vachya Aur Vachya ke Bhed.




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